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नितीश सुशासन कुमार ने अपने पसंदीदा जीतनराम मांझी को जबरिया गद्दी से बेदखल करते हुए बिहार में एक बार फिर से सत्ता संभालने की कोशिश की है। ये वही जीतनराम मांझी हैं जिन्हें गद्दी पर बैठाकर नितीश ने महादलित कार्ड खेला था लेकिन उन्हीं के चेले मांझी ने नितीश का यह प्रयास तो फेल किया ही, कुछ और मंत्रियों को हटाने की सिफारिश के बाद नए मन्त्रीमण्डल से या तो सरकार चलाने या फिर बहुमत न होने पर विधानसभा भंग करने की सिफारिश करने का मास्टरस्ट्रोक चलकर जनता दल यूनाइटेड विधायक दल के नेता निर्वाचित हो जाने के बावजूद नितीश को मुख्यमंत्री की गद्दी से दूर ही रखा है और गेंद राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी के पाले में फेंक दी है।
इस घटनाक्रम का फैसला कुछ भी हो लेकिन इससे सबसे बड़ा नुकसान नितीश और लालू को ही होगा क्योंकि इस घटना से उनकी सत्तालोलुपता उजागर हुई है और दलितों में गलत सन्देश गया है। यह घटना उत्तरप्रदेश के मायावती गेस्ट हॉउस काण्ड जैसा ही है जिसने उत्तरप्रदेश में दलितों और पिछड़ों के बीच एक गहरी खाईं पैदा कर दी थी। मांझी के पास अपनी शहादत को भुनाने का सुनहरा मौका है और वे भी मायावती की भाँति बिहार का दलित चेहरा बन सकते हैं क्योंकि बिहार में दलितों का कोई बड़ा चेहरा है भी नहीं।
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