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ये कौन सी क्रांति है ?
सुकमा नक्सली हमले में मारे गए हापुड़ के शहीद कुलदीप पुनिया की कहानी सुनकर आँखों में आंसू आ गए। महज पांच साल पहले सॆआर्पीएफ़ में भर्ती हुए कुलदीप अपने पिता के इकलौते पुत्र थे और 15 दिसम्बर को उनकी शादी होने वाली थी। उनके घर में शादी की तैयारियां जोर शोर से चल रही थीं और उनके परिवार के सदस्य शादी के कार्ड बांटने में व्यस्त थे। स्वयं कुलदीप विवाह हेतु 7 दिसम्बर को घर लौटने वाले थे लेकिन इससे चार दिन पहले आज तिरंगे में लिपटा उनका पार्थिव शरीर घर वापस लौटा। उनकी शादी के कार्ड अब उनकी चिता पर ही चढ़ा दिए गए।
गाँव वालों को आड़ बनाकर बहादुर जवानों से छापामार युद्ध लड़ने वाले नक्सलियों के लिए सहानुभूति जताने वाले छद्म बुद्धिजीवियों को अब भी नक्सलियों की करतूतों पर अगर शर्म न आये तो उनके लिए कहने को मेरे पास शब्द नहीं हैं। सुकमा के वीर शहीदों देश तुम्हारा बलिदान हमेशा याद रखेगा। हमें तुम पर नाज़ है !
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