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देश नेताजी की मृत्यु का सच जानना चाहता है !

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देश नेताजी की मृत्यु का सच जानना चाहता है !
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु जैसा कि प्रचलित है, एक विमान दुर्घटना में देश को आज़ादी मिलने से पहले 18 अगस्त सन 1945 को हो गई थी। अब भाजपानीत भारत सरकार का यह कहना समझ से परे है कि नेताजी की मृत्यु से सम्बन्धित 39 फाइलें यदि जनसाधारण के सामने लाई गईं तो कुछ देशों से भारत के सम्बन्ध बिगड़ने का खतरा है। यह तथ्य ध्यान में रखना चाहिए कि 18 अगस्त 1945 को नेताजी की मृत्यु के समय भारत में ब्रिटिश सरकार कार्य कर रही थी। अब फाइलें खोलने से सबंध खराब भी होंगे तो ब्रिटिश सरकार के होंगे, भला भारत सरकार के सम्बन्ध क्यों खराब होने लगे! तो क्या यह मान लिया जाए कि भारत सरकार यह मानती है कि नेताजी की मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुई बल्कि देश को आज़ादी मिलने के बाद रूस या किसी अन्य किसी देश द्वारा लंबे समय तक उन्हें बंदी बनाकर रखा गया या फिर उनकी हत्या कर दी गयी। नेताजी के बारे में जो दूसरी थ्योरियाँ प्रचलित हैं कि वे फैजाबाद में लम्बे समय तक गुमनामी बाबा बनकर रहे या रायगढ़ में वे कुछ समय तक रहे, शायद गलत हैं। सन 1999 में गठित मनोजकुमार मुखर्जी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में माना था कि नेताजी की विमान दुर्घटना में मृत्यु नहीं हुई थी लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस आयोग के निष्कर्षों को मानने से इनकार कर दिया था। 2005 में ताइवान सरकार ने इस आयोग को बताया था कि 18 अगस्त 1945 को उसकी ज़मीन पर कोई विमान दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुआ था। इन सब बातों से ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ तो पर्दादारी है जिसकी आड़ कांग्रेस ही नहीं अब भारतीय जनता पार्टी की सरकार भी ले रही है। लेकिन आज सन 2014 के अंतिम दिनों में जबकि विकिलीक का ज़माना है और विभिन्न देशों की सरकारें अपने पच्चीस वर्ष से अधिक पुराने ख़ुफ़िया दस्तावेज स्वयं सार्वजनिक कर रही हैं और भारत में भी सूचना का अधिकार कानून को लागू हुए एक दशक का समय होने जा रहा है। ऐसे में भारत सरकार का यह कहना कोई मायने नहीं रखता कि इन गोपनीय दस्तावेजों को सार्वजनिक करने से किसी देश के साथ सम्बन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। आज आवश्यकता इस बात की भी है कि देश यह जाने कि नेताजी ही नहीं बल्कि लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु भी कैसे हुई और चीन युद्ध, गोवा मुक्ति संग्राम, भारत-पाक युद्ध 1948, 1965 तथा 1971,आपातकाल 1984 के सिक्ख दंगे, 6 दिसम्बर 1992 आदि से सम्बन्धित गोपनीय फाइलें भी सार्वजनिक की जाएं ताकि आज़ादी के बाद के देश के इतिहास को उसकी समग्रता में समझा जा सके।

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