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ओम जय जगदीश हरे आरती प्रायः देश-विदेश के सभी मंदिरों में गाई जाती है और संसार भर में फैले हिन्दू अपने-अपने घरों में पूजा करते समय इस आरती का सस्वर पाठ करते हैं लेकिन बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि इस आरती के रचनाकार पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी थे जिनका जन्म आज से 177 साल पहले 1 सितम्बर को पंजाब के फिल्लौर नामक ग्राम में हुआ था। उन्होंने भाग्यवती नामक उपन्यास लिखा था जिसे कई विद्वान् हिन्दी का पहला उपन्यास मानते हैं। उन्हें आधुनिक पंजाबी भाषा का जनक कहा जाता है। पंजाबी गुरुमुखी में लिखी उनकी पुस्तकें सिक्खों दे राज दी विधियाँ और पंजाबी बातचीत पंजाबी साहित्य की प्रारंभिक पुस्तकें हैं। वे एक अच्छे ज्योतिर्विद भी थे और स्त्री शिक्षा के पक्षधर थे। भारत की स्वाधीनता की आग उनके ह्रदय में धधकती रहती थी। वे महाभारत के उद्धरण देकर अंग्रेजों को भारत से उखाड़ फेंकने का आह्वान युवाओं से किया करते थे। इससे घबराकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हे उनके गाँव से निष्कासित कर दिया था। एक ईसाई पादरी फादर न्यूटन जो उनके विचारों से बहुत प्रभावित था, के कहने पर अँगरेज़ सरकार ने उनका निष्कासन रद्द कर दिया था। उन्होंने इसी पादरी के अनुरोध पर बाइबिल के कुछ अंशों का गुरुमुखी में अनुवाद किया था। मात्र 44 वर्ष की अल्पायु में 24 जून 1881 को वे हमसे विदा हो गए। अन्तिम समय में उन्होंने कहा था कि मैं जा रहा हूँ, आज से हिन्दी का एक ही सपूत जीवित रहेगा। उनका यह संकेत भारतेंदु हरिश्चन्द्र की ओर था। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने उन्हें हिन्दी का उन्नायक रचनाकार कहा है। इस हिन्दी के अमर सपूत को मेरा शत शत नमन।
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