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ये ‘ किस’ तरह का लव है?

http://puneetbisaria.wordpress.com/
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कोच्चि से चली किस ऑफ़ लव की आंधी ने देश की राजधानी दिल्ली को भी अपने शिकंजे में जकड लिया है। आखिर किस ऑफ़ लव के समर्थक प्रेम करने की आज़ादी के नाम पर देश को अराजकता की राह पर क्यों ले जाने को उतारू हैं और प्रेम के नाम पर सेक्स के फूहड़ प्रदर्शन को क्यों सार्वजनिक स्थान पर करना चाहते हैं? कल उन्होने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिल्ली स्थित कार्यालय पर जैसी अतिवादिता का प्रदर्शन किया, उसकी अगली कड़ी के रूप में आज उन्होंने जे एन यू में अपनी फूहड़ता को जायज करने के लिए प्रदर्शन किया है।
जहाँ तक प्रेम और ओष्ठ चुम्बन का प्रश्न है तो भारतीय संस्कृति और साहित्य में इसका पर्याप्त वर्णन मिलता है परन्तु प्रेम दो विपरीत लिंगियों के बीच एक नितांत गोपनीय अभिसार है, जिसमें सार्वजनिकता का निषेध है। प्रेम और काम पर वात्स्यायन के कामशास्त्र से लेकर जयशंकर प्रसाद की कामायनी से होते हुए रामधारीसिंह दिनकर ने अपनी कृति उर्वशी तक में पर्याप्त विचार किया है और ये सभी इस निष्कर्ष तक पहुंचे हैं कि प्रेम और काम परस्पर पूरक हैं और एकांत के पलों में प्रेम के माध्यम से काम का उद्वेग सृष्टि सृजन हेतु अपरिहार्य है लेकिन सडकों पर अनैतिक आचरण के रूप में किसी के साथ भी किस ऑफ़ लव के भोंडे प्रदर्शन को किसी भी तरह से सर्जनात्मक नहीं माना जा सकता। यह कुछ कामुक और विकृत मानसिकता के लड़के लड़कियों की यौन क्षुधा के नग्न प्रदर्शन से अधिक और कुछ नहीं है, जिस पर सरकार को सख्ती से रोक लगाना चाहिए वरना बच्चों और किशोरों को गलत राह पर ले जाने से नहीं रोका जा सकेगा।

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