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वतन की फ़िक्र कर नादां मुसीबत आने वाली है।
तेरी बर्बादियों के चर्चे हैं आसमानों में।
न संभलोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्तां वालों।
तुम्हारी दास्ताँ भी न होगी दास्तानों में ।।
हिंदुस्तान के भविष्य को लेकर चिंता ज़ाहिर करने वाले मशहूर शायर अल्लामा इकबाल की 9 नवम्बर को 137 वीं जयंती थी। 9 नवम्बर सन 1877 को सियालकोट में धार्मिक माँ इमाम बीबी और एक दरजी पिता शेख नूर मोहम्मद के घर में जन्मे इकबाल ने अपनी शिक्षा- दीक्षा ब्रिटेन और जर्मनी में की। पढाई के दौरान उन्हें भारत तथा इन यूरोपीय देशों के बीच की खाई स्पष्ट दिखने लगी थी। तभी उन्होंने देश को उपर्युक्त पंक्तियों से चेताने का काम किया और देशवासियों में देश प्रेम का जज्बा पैदा करने के लिए कौमी तराना लिखा जो निम्नवत है-
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुले हैं इसकी यह गुलसितां हमारा।
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।
हिन्दू-मुस्लिम एकता को वे देश की सबसे बड़ी ज़रूरत मानते थे। अपने इसी विचार को पुष्ट करते हुए उन्होंने राम की स्तुति में लिखा-
लबरेज है शराबे-हकीकत से जामे हिन्द
सब फलसफी है खित्ता ए मगरिब के रामे हिन्द।
ये हिंदियों के फ़िक्रे फलक उसका है असर
रिफअत में आसमां से भी ऊंचा है बामे हिन्द।
इस देश में हुए हैं हजारों मलक सरिश्त
मशहूर जिसके दम से है दुनिया में नामे हिन्द।
है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़
अहले नजर समझते हैं उसको इमामे हिन्द।
एजाज़ इस चरागे हिदायत का है यही
रोशन तिराज़ सहर ज़माने में शामे हिन्द।
हालांकि बाद में उन्होंने ही उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त, बलूचिस्तान, सिंध और कश्मीर को मिलाकर एक इस्लामी देश बनाने की बात कही और जिन्ना को इंग्लैण्ड से भारत वापस आकर मुस्लिम लीग का नेतृत्व करने हेतु प्रेरित किया। सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा लिखने वाला यह शायर क्यों कर गाने लगा?
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