आइए सरस्वती पूजन दिवस पर जानते हैं सरस्वती के बारे में।
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आइए सरस्वती पूजन दिवस पर जानते हैं सरस्वती के बारे में। कहा जाता है कि सरस्वती का जन्म ब्रह्मा के मुँह से हुआ था। वह वाणी की अधिष्ठात्री देवी है। इनका नामांतर ‘शतरूपा’ भी है। इसके अन्य पर्याय हैं, वाणी, वाग्देवी, भारती, शारदा, वागेश्वरी इत्यादि। ये शुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा तथा श्वेतपद्मासना कही गई हैं। मान्यता है कि इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। मूर्ख कालिदास इन्हीं की कृपा से महाकवि बने, ऐसी जनश्रुति है। माघ शुक्ल पंचमी को इनकी पूजा की परिपाटी चली आ रही है। प्रारम्भ में सभ्यता सरस्वती नदी के किनारे ही विकसित हुई थी जो भौगोलिक रूप में पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा के आस-पास का क्षेत्र था परन्तु कुछ भूगर्भीय परिवर्तनों विशेषकर भू प्लेटों के खिसकने से ये नदी विलुप्त हो गयी। वैज्ञानिकों ने हरियाणा में इस नदी के विलुप्त पग चिह्न प्राप्त किए हैं। तत्समय जीवनदायिनी नदी होने के कारण इसका बड़ा सम्मान था, कालांतर में यह नदी एक देवी के रूप में ज्ञानदायिनी देवी कहलाने लगी।
वेदों में सरस्वती का वर्णन श्वेत वस्त्रा के रूप में किया गया है। श्वेत पुष्प व मोती इनके आभूषण हैं, तथा श्वेत कमल गुच्छ पर ये विराजमान हैं। इनके हाथ में वीणा (सितार से मिलता-जुलता तारयुक्त वाद्य) शोभित है। वेद इन्हें जलदेवी के रूप में महत्ता देते हैं। सरः और वती से सरस्वती शब्द बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ भी जल से युक्त होना है। सरस्वती का पौराणिक इतिहास इन्हें उन धार्मिक कृत्यों से जोड़ता है, जो इन्हीं के नाम वाग्देवी के रूप में की जाती है तथा इनका संबंध बोलने व लिखने, शब्द की उत्पत्ति, दिव्यश्लोक विन्यास तथा संगीत से भी है। हंस अथवा मोर को इनका वाहन माना गया है। पुस्तक और वीणा धारिणी के रूप में इनकी स्तुति की जाती है। सरस्वती वंदना के श्लोक निम्नवत हैं –
अर्थात जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥1॥
शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत् में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान् बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥2॥
आइए सरस्वती पूजन दिवस पर जानते हैं सरस्वती के बारे में। कहा जाता है कि सरस्वती का जन्म ब्रह्मा के मुँह से हुआ था। वह वाणी की अधिष्ठात्री देवी है। इनका नामांतर ‘शतरूपा’ भी है। इसके अन्य पर्याय हैं, वाणी, वाग्देवी, भारती, शारदा, वागेश्वरी इत्यादि। ये शुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा तथा श्वेतपद्मासना कही गई हैं। मान्यता है कि इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। मूर्ख कालिदास इन्हीं की कृपा से महाकवि बने, ऐसी जनश्रुति है। माघ शुक्ल पंचमी को इनकी पूजा की परिपाटी चली आ रही है। प्रारम्भ में सभ्यता सरस्वती नदी के किनारे ही विकसित हुई थी जो भौगोलिक रूप में पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा के आस-पास का क्षेत्र था परन्तु कुछ भूगर्भीय परिवर्तनों विशेषकर भू प्लेटों के खिसकने से ये नदी विलुप्त हो गयी। वैज्ञानिकों ने हरियाणा में इस नदी के विलुप्त पग चिह्न प्राप्त किए हैं। तत्समय जीवनदायिनी नदी होने के कारण इसका बड़ा सम्मान था, कालांतर में यह नदी एक देवी के रूप में ज्ञानदायिनी देवी कहलाने लगी। वेदों में सरस्वती का वर्णन श्वेत वस्त्रा के रूप में किया गया है। श्वेत पुष्प व मोती इनके आभूषण हैं, तथा श्वेत कमल गुच्छ पर ये विराजमान हैं। इनके हाथ में वीणा (सितार से मिलता-जुलता तारयुक्त वाद्य) शोभित है। वेद इन्हें जलदेवी के रूप में महत्ता देते हैं। सरः और वती से सरस्वती शब्द बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ भी जल से युक्त होना है। सरस्वती का पौराणिक इतिहास इन्हें उन धार्मिक कृत्यों से जोड़ता है, जो इन्हीं के नाम वाग्देवी के रूप में की जाती है तथा इनका संबंध बोलने व लिखने, शब्द की उत्पत्ति, दिव्यश्लोक विन्यास तथा संगीत से भी है। हंस अथवा मोर को इनका वाहन माना गया है। पुस्तक और वीणा धारिणी के रूप में इनकी स्तुति की जाती है। सरस्वती वंदना के श्लोक निम्नवत हैं – या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना। या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥ शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्। हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥
अर्थात जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥1॥ शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत् में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान् बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥2॥
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