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हिंदी साहित्य में नकेनवाद की त्रयी (नलिनविलोचन शर्मा, केसरी कुमार माथुर और नरेश मेहता) के महत्त्वपूर्ण कवि आचार्य नलिनविलोचन शर्मा का जन्म 16 फ़रवरी सन 1916 को पटना में हुआ था। वे पटना विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रोफ़ेसर थे। उन्होंने हिंदी साहित्य को छायावाद की ऐन्द्रियजालिक कविताओं तथा साम्यवाद की पोस्टरनुमा कविताओं से अलग प्रयोगवाद की पूर्वपीठिका के रूप में प्रपद्यवाद या नकेनवाद की अवधारणा दी, जिससे प्रभावित होकर अज्ञेय ने कालान्तर में प्रयोगवाद का तारसप्तकीय आन्दोलन खडा किया। उन्होंने शब्द की महत्ता को सर्वोपरि माना और कविता में संगीत,लय का भी किया। उनका मत था कि गद्य और पद्य विरोधी न होकर एक दूसरे के पूरक होते हैं . इसीलिये कथालेखन में भी उन्होंने सिद्धहस्तता का परिचय दिया। उनकी कहानियाँ मनोविश्लेशणात्मक हैं। वे एक उच्च कोटि के समीक्षक भी थे। सूत्रात्मक शैली की समीक्षा की हिंदी में शुरुआत आपने ही की थी। आचार्य नलिनविलोचन शर्मा द्वारा रेणु के अमर उपन्यास मैला आँचल की समीक्षा के बाद ही यह उपन्यास हिन्दी साहित्य जगत में अपना स्थान अर्जित कर सका था। काव्यशास्त्रीय विवेचन के क्षेत्र में भी उन्होंने अपनी सर्वतोभावेन प्रतिभा का परिचय देते हुए कुछ मौलिक उद्भावनाएँ दीं। हिंदी में चेंबर ड्रामा या वेश्म नाट्य को प्रारंभ करने का श्रेय भी उन्हें है। वे एक कुशल सपादक भी थे। दृष्टिकोण, साहित्य, कविता आदि पत्रिकाओं का उन्होंने संपादन किया। सन 1954 में उन्होंने प्रख्यात दलित राजनेता बाबू जगजीवन राम की अंग्रेजी में इसी नाम से जीवनी लिखकर साहित्य जगत को उनकी समाजसेवा से अवगत कराया। 13 सितम्बर, सन 1961 को प्राध्यापकीय साहित्य सृजन का यह नक्षत्र चिर निद्रा में सो गया। उनकी साहित्यिक साधना का विवरण निम्नांकित है-
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