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संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रत्येक भारतीय नागरिक को जीवन जीने का अधिकार दिया गया है लेकिन रैगिंग जैसी बुराई को दर्शाते हुए यह फिल्म इस अधिकार पर कड़ी चोट का चित्रण करती है। रैगिंग एक निर्दोष बालक का खेल-खेल में किस तरह से जीवन तबाह कर देती है, इसका यथार्थपरक चित्रण करती है फिल्म टेबल नंबर 21, लेकिन ऐसी फ़िल्में नोटिस नहीं की जातीं क्योंकि उनका हीरो कोई खान, कपूर या बड़ा सुपरहीरो नहीं है और निर्देशक भी नामचीन नहीं है। आदित्य दत्त जैसे अनाम से निर्देशक के कुशल निर्देशन तथा राजीव खंडेलवाल, परेश रावल, टीना देसाई जैसे कलाकारों के सजीव, सहज स्वाभाविक अभिनय से सुसज्जित इस फिल्म में सस्पेंस, ऐक्शन और थ्रिल का बेहतरीन तड़का है और जिमी सेन ने एक बेहद चुस्त पटकथा तथा दीपक बेहेरा ने रोचक शैली में कहानी पिरोई है लेकिन फिर भी एक बात मन को खटकती है कि मिस्टर खान (परेश रावल) को नायक-नायिका की विगत ज़िन्दगी के गोपनीय राज़ भला कैसे मालूम हो जाते हैं, यदि इस रहस्य पर से भी पर्दा हटा दिया जाता तो बेहतर होता। रवि वालिया ने फिजी की खूबसूरती को बेहद खूबसूरती के साथ कैमरे में कैद करके दर्शकों के समक्ष पेश करने में सफलता पाई है। विकी रजनी और सुनील लुल्ला भी बधाई के पात्र हैं जिन्होंने एक बेहद ज़रूरी विषय पर फिल्म प्रोड्यूस की। कालेज जाने वाले प्रत्येक विद्यार्थी तथा उसके माता-पिता को यह फिल्म अवश्य देखनी चाहिए। मेरी रेटिंग है 3.5 स्टार।
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