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इतिहास पढ़ते हुए मेरे मन में एक विचार कौंध रहा है कि भारत के विद्यार्थियों को इतिहास पढ़ाते समय हमारी सुई 1947 पर आकर जाने कबसे अटकी हुई है। उसके आगे का क्या कोई इतिहास हमारे पास नहीं है? या हम अपने नौनिहालों को 1962 ( चीन से युद्ध), 1975 (इमरजेंसी), 1984(सिक्ख नरसंहार), 1992(अयोध्या), 1999 (कारगिल और कंधार) की कटु स्मृतियों से दूर रखना चाहते हैं क्योंकि ऐसा करने से शायद हमारे राजनैतिक हित भी सधते हैं और इसमें पक्ष विपक्ष सबकी मौन सहमती है भले ही इसके लिए 1961 (गोवा मुक्ति),1965 (पाकिस्तान पर जीत). 1971 (बांग्लादेश का उदय), 1972 (पोखरण परमाणु परीक्षण) आदि जैसी महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों से छात्र वंचित क्यों न रहें।
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