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स्वामी विवेकानंद की आज सर्वाधिक ज़रूरत है।

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स्वामी विवेकानंद को उनकी 150 वीं जयन्ती पर याद करना उस महामनीषी को स्मरण करना है, जिसने परतंत्र भारत को उसके गौरवशाली अतीत का बोध कराया, योग और हिंदुत्व की प्रायः विस्मृत कड़ी को विश्व के समक्ष इस ढंग से रक्खा कि समस्त विश्व भारतीय संस्कृति की दैदीप्यमान आभा में नतमस्तक होने लगा। उन्होंने महसूस किया कि भारतवासियों की परतंत्रता और दुरवस्था का मूल कारण यह है कि उन्हें अपने गौरवशाली अतीत का भान नहीं है और पाश्चात्य शिक्षा के कारण वे भारतीयता की विरासत से कटते जा रहे हैं, परतंत्रता के कारण उनका आत्मविश्वास डगमगा रहा है। उन्होंने अपनी दूरदृष्टि से यह समझ लिया कि सुषुप्त भारतीय सिंहों को राष्ट्रवाद की ओर ले जाने का रास्ता भारतीय संस्कृति के गौरवशाली अतीत के स्मरण से ही मिल सकता है। अनेक इतिहासवेत्ताओं का अभिमत है कि भारत के स्वाधीनता संग्राम को जो चिंगारी सन 1857 के बाद मंद पड़ गई थी उसे पुनः प्रज्वलित करने का कार्य स्वामी विवेकानंद के व्याख्यानों एवं ओजपूर्ण विचारों से संभव हुआ। इन अर्थों में वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम को गति प्रदान करने वाली विभूति कहे जा सकते हैं। 11 सितम्बर सन 1893 को आर्ट इंस्टीटयूट आफ शिकागो की धर्मसंसद के माध्यम से भारत की तब तक अल्पज्ञात अज्ञात संस्कृति को विश्वपटल पर रखकर उन्होंने असंख्य विदेशियों को भारतीय संस्कृति के प्रति आकृष्ट किया, जिसके परिणामस्वरूप आज भारत की संस्कृति का डंका सम्पूर्ण विश्व में बज रहा है। उन्होंने हिन्दू संस्कृति को अपने तार्किक विचारों से उस विदेशी जनता के समक्ष पेश किया जिसके मन में हिन्दू संस्कृति के प्रति अनेक पूर्वाग्रह विद्यमान थे।इससे पहले उन्होंने आत्मचिंतन तथा अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस से पर्याप्त तर्क वितर्क करते हुए अपनी समस्त शंकाओं का समाधान किया और उसके बाद ही वे भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार हेतु सक्रिय हुए। आज देश जिस प्रकार के झंझावातों में उमड़-घुमड़ रहा है, ऐसे में स्वामी विवेकानंद जैसे युगबोधक की महती आवश्यकता है जो आज के युवा वर्ग में पुनः कर्त्तव्य और राष्ट्र चिंतन के मन्त्र फूंक सके। ऐसे महान व्यक्तित्व की 150 वीं जयन्ती पर मेरी ओर से शत शत नमन।

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