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सन 2012 हमसे विदा ले चुका है और हम आज सन 2013 के पहले दिन का स्वागत कर रहे हैं।लेकिन हम उत्सव प्रेमी भारतीयों के मन मस्तिष्क में वह उमंग उल्लास कतई नहीं है जो हर साल हुआ करता था। आइये याद करें साल 2011 को जब एक 74 बरस के बूढ़े व्यक्ति को जिसे हमारे लिए अनशन करते हुए देखकर हम उद्वेलित हो उठे थे और सडकों पर उतर आये थे।ऐसा हमने टी वी पर उनकी रोजाना बिगड़ रही हालत देखकर किया था। यह मानवीय संवेदनाओं की सूखती जड़ों को फिर से हरा भरा करने की कवायद थी। लेकिन 2012 में आकर संवेदनाओं का यह वृक्ष हरिया कर लहलहा उठा है। सन 2012 के अवसान के दिनों में हम उस लड़की के लिए भाव विह्वल हो उठे, जिसका न तो हमें नाम मालूम था न ही धर्म, जाति का पता था लेकिन फिर भी सारा देश उसके दर्द से दुखी हो गया, यह शायद संवेदनाओं के उस दौर में वापसी का साल था, जब हम दूसरे के दुःख को अपना समझते थे और उसकी भावनाओं से जुड़ाव महसूसते थे। शायद यह एक सबसे बड़ी उपलब्धि है जो 2012 हमें देकर गया है। इसके विपरीत पश्चिम में क्या हो रहा है? आइये देखें। न्युयोर्क में 31 साल की एक औरत एरिका मेनिन्देज़ 46 वर्षीय भारतीय सुनन्दो सेन को केवल इसलिए चलती ट्रेन से धक्का देकर मार देती है क्योंकि 9/11 के बाद से उसे मुसलमानों और हिन्दुओं से नफरत हो गयी है। इसके बावजूद उसे अपने किये पर पछतावा नहीं होता और वह अदालत में भी न्यायाधीश के सामने क्रूर हंसी हंसती रहती है। वहां के स्कूलों में बच्चों द्वारा गोलीबारी की घटनाएँ आम हो गयी हैं। इसके विपरीत भारतीय समाज दिन प्रतिदिन अधिक संवेदनशील अधिक सुसंस्कृत होता जा रहा है और क्रूरता, अपराध, पाखण्ड, निर्धनता, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, के विरुद्ध एकजुट हो रहा है। यह हमारे भविष्य के लिए शुभ लक्षण है। सन 2013 संवेदनाओं के इस धरातल को और अधिक उर्वर बनाए और दुनिया को शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का भान कराये, ऐसी शुभाशा के साथ आप सभी मित्रों को नव वर्ष 2013 की ह्रदय से बधाई।
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