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आज गाँधी जी होते तो वे भी खुदरा में ऍफ़ डी आई का विरोध करते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।

http://puneetbisaria.wordpress.com/
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बर्ट्रेंड रसेल ने अपनी पुस्तक आथोरिटी एंड इंडीविजुअल में लिखा है, ” तथाकथित आधुनिक औद्योगीकरण की प्रक्रिया से सर्वप्रथम नुकसान उस स्थानीय तथा पारंपरिक कौशल को पहुँचता है जिससे कुशल कारीगर दक्षता का आनंद हासिल करते हैं और उन्हें जीने की ऐसी राह मिलती है जो यद्यपि श्रमसाध्य है मगर मुश्किलों और जोखिम से भरी परिस्थितियों के बीच निपुणता तथा प्रयास के माध्यम से गौरव, आत्मसम्मान एवं उपलब्धि का उल्लास उन्हें देती है। द्वितीय बात यह होती है कि आज माल की आतंरिक उत्कृष्टता में सौन्दर्यबोध तथा उपादेयता दोनों दृष्टियों से भी कमी आयी है, तृतीय बात यह कि स्थानीय ग्रामोद्योग के खात्मे के कारण शहरीकरण की प्रवृत्ति अनियंत्रित रूप से बढ़ी है। ” भारत के सम्बन्ध में चर्चा करते हुए रसेल कहते हैं, “भारत पारंपरिक रूप से ग्राम समुदायों की भूमि रहा है। यदि इस परंपरागत जीवन पद्धति को अचानक और हिंसक रूप से शहरी औद्योगीकरण की कहीं बड़ी बुराइयों को हासिल करने के लिए खो दिया गया, तो यह एक त्रासदी होगी।” महात्मा गाँधी बर्ट्रेंड रसेल से अत्यधिक प्रभावित थे और उनका ग्रामोदय एवं ग्राम स्वराज भी इसी भावना पर आधारित था। गाँधी जी के आदर्शों की दुहाई देने वाली सरकार खुदरा में ऍफ़ डी आई लाकर क्या इसी त्रासदी को आमंत्रित नहीं कर रही है?यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए।

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