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बीते २० सालों से खान त्रिमूर्ति बोलीवुड पर राज़ कर रही है. इनके अलावा अक्षय कुमार, सनी देयोल, बोबी देयोल और अजय देवगन हैं जो लगभग इनके समकालीन हैं या इनके आसपास फिल्मों में आये. इनसे पहले के अनिल कपूर और संजय दत्त आज भी अपनी बेटी से भी छोटी हीरोइनों के साथ कमर मटकाते देखे जा सकते हैं. इनके बाद की पीढ़ी के जॉन अब्राहम, अभिषेक बच्चन वगैरह भी अपनी चमक खो चुके हैं और शाहिद कपूर तथा रणवीर कपूर भी इनकी जगह लेने में सक्षम नहीं दिख रहे हैं. ऐसे में एक बड़ा सवाल बोलीवुड के सामने आ गया है कि खानों के बाद ऐसा कौन है जो अपने बूते पर दर्शकों तक सिनेमा हाल तक खींचकर ला सके. इन तीनों खानों पर जिस तरह से बुढ़ापा असर कर रहा है और बीमारियाँ अपने शिकंजे में ले रही हैं, उससे आज से तीन चार साल बाद बोलीवुड के नायक विहीन हो जाने का खतरा पैदा हो गया है. जैसे अस्सी-नब्बे के दशक के नायकविहीनता के दौर में हमें अमिताभ से ही काम चलाना पड़ता था, आज भी हम कमोबेश उसी दौर में पहुँच गए हैं. सिने जगत को इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा और नई पौध को लेने का रिस्क लेना ही पड़ेगा.
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