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प्रवासी साहित्य

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प्रवासी साहित्य जड़ों से बिछुड़कर नयी राह बनाने वालों का साहित्य है। दुर्भाग्य का विषय है कि हिन्दी साहित्य में अभी तक इनके योगदान का उचित मूल्यांकन नहीं किया गया है। सत्तू, लोटाख् डोरी और एक रामचरितमानस की पोथी लेकर गिरमिटिया मजदूर के रूप में आज से लगभग 150 साल पहले गए भारतीयों ने दक्षिण अफ्रीका, फिजी, सूरीनाम, मारीशस, ट्रिनिडाड एण्ड टोबैगो आदि देशों में जाकर अपने कठोर परिश्रम एवं दृढ़ जिजीविषा र्शिक्त से कठिनाइयों पर विजय पाते हुए अनेक देशों में सत्ता के शीर्ष तक पहुँचने में सफलता पाई है।आज़ादी मिलने के बाद एक बड़ा तबका अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, हंगरी, मलेशिया, रूस, स्वीडन, नार्वे, अबूधाबी, न्यूजीलैण्ड, अर्जेण्टीना आदि देशों में प्रायः उच्च शिक्षा के लिए गया, जिनमें कुछ लौट आए तो कुछ वहीं जाकर बस गए। आठवें दशक में नाम फिल्म में पंकज उधास द्वारा गाई गज़ल ‘चिट्ठी आई है‘ की विदेशों में अपार लोकप्रियता का कारण यही था कि प्रवासी भारतीयों ने इसमें अपने देश की मिट्टी की खुशबू को महसूस किया था। एक अनुमान के मुताबिक लगभग अस्सी देशों में लगभग चार करोड़ भारतवंशी निवास कर रहे हैं और उन देशों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
प्रवासी साहित्यकारों को मोटे तौर पर दो कोटियों में बाँटा जा सकता है। प्रथम कोटि उन साहित्यकारों की है, जो पहले भारत में रहकर लेखन करते रहे और बाद में विदेश जाकर बस गए या कुछ साल विदेश रहकर वापस भारत लौट आए। इन्हें अर्द्धप्रवासी कहा जाना चाहिए। दूसरी श्रेणी उन साहित्यकारों की है, जिनका जन्म विदेश में ही हुआ, किन्तु माटी का मोह समय-समय पर उन्हें भारत खींच लाता है।ये ही वास्तविक प्रवासी साहित्यकार हैं। प्रथम कोटि में अज्ञेय, उषा प्रियंवदा, अचला शर्मा (ब्रिटेन), कृष्ण बलदेव वैद (अमेरिका), टी.एन. सिंह, तेजेन्द्र शर्मा (ब्रिटेन) आदि को रखा जा सकता है। द्वितीय कोटि में अभिमन्यु अनत (मारीशस), कृष्ण बिहारी (अबूधाबी), पूर्णिमा बर्मन (अबूधाबी), कविता वाचक्नवी (ब्रिटेन), सुषम बेदी (अमेरिका), अंजना संधीर (अमेरिका), डॉ. सुरेन्द्र गम्भीर, (अमेरिका), उषा राजे सक्सेना (ब्रिटेन), उषा वर्मा (ब्रिटेन), ओंकारनाथ श्रीवास्तव(ब्रिटेन), कीर्ति चौधरी(ब्रिटेन), डॉ. कृष्ण कुमार (ब्रिटेन), दिव्या माथुर (ब्रिटेन), पद्मेश गुप्त (ब्रिटेन), पुष्पा भार्गव (ब्रिटेन), मोहन राणा (ब्रिटेन), शैल अग्रवाल (ब्रिटेन), सत्येंद्र श्रीवास्तव (ब्रिटेन), लक्ष्मीधर मालवीय (ब्रिटेन), स्नेह ठाकुर (कनाडा), जकिया जुबेरी, प्रेमलता वर्मा (अर्जेण्टीना), प्रो. सुब्रह्माणियम (फिजी), अर्चना पेन्यूली (डेनमार्क), अमित जोशी (नार्वे), सुरेशचन्द्र शुक्ल (नार्वे), रामेश्वर अशांत (अमेरिका), डॉ. विजय कुमार मेहता (अमेरिका), डॉ. वेदप्रकाश बटुक (अमेरिका), विनोद तिवारी, (अमेरिका), सचदेव गुप्ता (अमेरिका), गौतम सचदेव (ब्रिटेन), डॉ. कमलकिशोर गोयनका (ब्रिटेन), धनराज शम्भू (मारीशस), धर्मानन्द(मारीशस), डॉ. ब्रिजेन्द्रकुमार भगत ‘मधुकर’(मारीशस), मुकेश जीबोध (मारीशस), मुनाश्वरलाल चिन्तामणि (मारीशस), राज हीरामन (मॉरीशस), सूर्यदेव खिरत (मारीशस), अजामिल माताबदल (मारीशस), अजय मंग्रा (मारीशस), डॉ. उदयनारायण गंगू (मारीशस), नारायणपत देसाई (मारीशस), प्रहलाद रामशरण (मॉरीशस), हेमराज सुन्दर (मारीशस), पूजाचंद नेमा(मारीशस), मार्टिन हरिदत्त लक्ष्मन (सूरीनाम), महादेव खुनखुन (सूरीनाम), सुरजन परोही (सूरीनाम), डॉ. पुष्पिता (सूरीनाम), बासुदेव पाण्डे (ट्रिनिडाड), डॉ. रामभजन सीताराम (दक्षिण अफ्रीका), उषा ठाकुर (नेपाल), डॉ. विवेकानन्द शर्मा (फिजी), डॉ. राजेन्द्र सिंह (कनाडा) आदि आते है।

प्रवासी साहित्य जड़ों से बिछुड़कर नयी राह बनाने वालों का साहित्य है। दुर्भाग्य का विषय है कि हिन्दी साहित्य में अभी तक इनके योगदान का उचित मूल्यांकन नहीं किया गया है। सत्तू, लोटाख् डोरी और एक रामचरितमानस की पोथी लेकर गिरमिटिया मजदूर के रूप में आज से लगभग 150 साल पहले गए भारतीयों ने दक्षिण अफ्रीका, फिजी, सूरीनाम, मारीशस, ट्रिनिडाड एण्ड टोबैगो आदि देशों में जाकर अपने कठोर परिश्रम एवं दृढ़ जिजीविषा र्शिक्त से कठिनाइयों पर विजय पाते हुए अनेक देशों में सत्ता के शीर्ष तक पहुँचने में सफलता पाई है।आज़ादी मिलने के बाद एक बड़ा तबका अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, हंगरी, मलेशिया, रूस, स्वीडन, नार्वे, अबूधाबी, न्यूजीलैण्ड, अर्जेण्टीना आदि देशों में प्रायः उच्च शिक्षा के लिए गया, जिनमें कुछ लौट आए तो कुछ वहीं जाकर बस गए। आठवें दशक में नाम फिल्म में पंकज उधास द्वारा गाई गज़ल ‘चिट्ठी आई है‘ की विदेशों में अपार लोकप्रियता का कारण यही था कि प्रवासी भारतीयों ने इसमें अपने देश की मिट्टी की खुशबू को महसूस किया था। एक अनुमान के मुताबिक लगभग अस्सी देशों में लगभग चार करोड़ भारतवंशी निवास कर रहे हैं और उन देशों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

प्रवासी साहित्यकारों को मोटे तौर पर दो कोटियों में बाँटा जा सकता है। प्रथम कोटि उन साहित्यकारों की है, जो पहले भारत में रहकर लेखन करते रहे और बाद में विदेश जाकर बस गए या कुछ साल विदेश रहकर वापस भारत लौट आए। इन्हें अर्द्धप्रवासी कहा जाना चाहिए। दूसरी श्रेणी उन साहित्यकारों की है, जिनका जन्म विदेश में ही हुआ, किन्तु माटी का मोह समय-समय पर उन्हें भारत खींच लाता है।ये ही वास्तविक प्रवासी साहित्यकार हैं। प्रथम कोटि में अज्ञेय, उषा प्रियंवदा, अचला शर्मा (ब्रिटेन), कृष्ण बलदेव वैद (अमेरिका), टी.एन. सिंह, तेजेन्द्र शर्मा (ब्रिटेन) आदि को रखा जा सकता है। द्वितीय कोटि में अभिमन्यु अनत (मारीशस), कृष्ण बिहारी (अबूधाबी), पूर्णिमा बर्मन (अबूधाबी), कविता वाचक्नवी (ब्रिटेन), सुषम बेदी (अमेरिका), अंजना संधीर (अमेरिका), डॉ. सुरेन्द्र गम्भीर, (अमेरिका), उषा राजे सक्सेना (ब्रिटेन), उषा वर्मा (ब्रिटेन), ओंकारनाथ श्रीवास्तव(ब्रिटेन), कीर्ति चौधरी(ब्रिटेन), डॉ. कृष्ण कुमार (ब्रिटेन), दिव्या माथुर (ब्रिटेन), पद्मेश गुप्त (ब्रिटेन), पुष्पा भार्गव (ब्रिटेन), मोहन राणा (ब्रिटेन), शैल अग्रवाल (ब्रिटेन), सत्येंद्र श्रीवास्तव (ब्रिटेन), लक्ष्मीधर मालवीय (ब्रिटेन), स्नेह ठाकुर (कनाडा), जकिया जुबेरी, प्रेमलता वर्मा (अर्जेण्टीना), प्रो. सुब्रह्माणियम (फिजी), अर्चना पेन्यूली (डेनमार्क), अमित जोशी (नार्वे), सुरेशचन्द्र शुक्ल (नार्वे), रामेश्वर अशांत (अमेरिका), डॉ. विजय कुमार मेहता (अमेरिका), डॉ. वेदप्रकाश बटुक (अमेरिका), विनोद तिवारी, (अमेरिका), सचदेव गुप्ता (अमेरिका), गौतम सचदेव (ब्रिटेन), डॉ. कमलकिशोर गोयनका (ब्रिटेन), धनराज शम्भू (मारीशस), धर्मानन्द(मारीशस), डॉ. ब्रिजेन्द्रकुमार भगत ‘मधुकर’(मारीशस), मुकेश जीबोध (मारीशस), मुनाश्वरलाल चिन्तामणि (मारीशस), राज हीरामन (मॉरीशस), सूर्यदेव खिरत (मारीशस), अजामिल माताबदल (मारीशस), अजय मंग्रा (मारीशस), डॉ. उदयनारायण गंगू (मारीशस), नारायणपत देसाई (मारीशस), प्रहलाद रामशरण (मॉरीशस), हेमराज सुन्दर (मारीशस), पूजाचंद नेमा(मारीशस), मार्टिन हरिदत्त लक्ष्मन (सूरीनाम), महादेव खुनखुन (सूरीनाम), सुरजन परोही (सूरीनाम), डॉ. पुष्पिता (सूरीनाम), बासुदेव पाण्डे (ट्रिनिडाड), डॉ. रामभजन सीताराम (दक्षिण अफ्रीका), उषा ठाकुर (नेपाल), डॉ. विवेकानन्द शर्मा (फिजी), डॉ. राजेन्द्र सिंह (कनाडा) आदि आते है।

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