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आज राजमाता के निर्देश पर मंत्रिमंडल का चेहरा बदलने की कोशिश की जा रही है. इस फेरबदल में कुछ नाम जाएँगे और कुछ नए नाम आ जाएँगे, कुछ की तरक्की होगी तो कुछ के पर कतरे जाएँगे, लेकिन बड़ा सवाल यह है की इस पूरी कवायद से भला क्या होगा? क्या जनता को महंगाई से मुक्ति मिल जाएगी या अब तक हुए सरे घोटालों के दाग धुल जाएँगे. इस कसरत से जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं वहां के चंद मंत्री बनाकर क्या उस राज्य की जनता को खुश होने का अवसर मिल जाएगा या वह सरकार के निकम्मेपन और नाकारेपन को भूलकर फिर से कांग्रेस को वोट देने लगेगी? ये ऐसे सवाल हैं, जिनका उत्तर कांग्रेस को समय रहते ढूँढना होगा. यदि भारतीय जनता पार्टी और वामपंथी दल सशक्त विपक्ष की भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं तो इसका अर्थ यह नहीं है की कांग्रेस को मनमानी करने की छूट मिली हुई है और वह कुछ प्यादे बदलकर या जाति, क्षेत्र, संप्रदाय आदि के आधार पर कुछ चेहरे लाकर देश की जनता को बरगला सकती है. यदि वह ऐसा सोचती है तो यह उसकी ग़लतफ़हमी होगी. आज ज़रुरत एक ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद पर लाने की है, जो उर्जावान हो, जिसे देश की समस्याओं की समझ हो और जो सिर्फ राहुल गाँधी के आने तक केयरटेकर प्रधानमंत्री बनकर काम न करने वाला हो. राजमाता और युवराज को भी यह समझना होगा की जिस हाल में आज वे देश को चला रहे हैं, उस रास्ते से वे अपने आगे गड्ढा ही खोद रहे हैं. यह देश मनमोहन सिंह से जितनी जल्दी मुक्ति पा लेगा, उतना ही इस देश के लिए अच्छा होगा और कांग्रेस के लिए भी. और बेहतर तो यह होगा की युवराज स्वयं देश की बागडोर संभाल लें और अगले डेढ़ सालों में जनता को यह विश्वास दिलाने का प्रयत्न करें की कांग्रेस भी देश को अच्छा शासन दे सकती है. तभी वो २०१४ में कुछ पूंजी अर्जित कर सकते हैं वरना फेरबदल की इस उठापटक से कुछ हासिल होने वाला नहीं है.
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