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हिन्दी सिनेमा का अमर महाकाव्य मदर इण्डिया

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विगत दिनों मैंने अपने समूह फिल्म समीक्षा पर एक सर्वेक्षण कराया था, जिसमें लोगों से पूछा गया था कि उनकी नज़र में अब तक की सर्वश्रेष्ठ फिल्म कौन है, इस सर्वेक्षण में १० फिल्मों को शामिल किया गया था तथा उत्तर देने वालों को अपने पसंद की फिल्म जोड़ने का भी विकल्प दिया गया था. इस सर्वेक्षण में ७५ प्रतिशत से अधिक लोगों ने मदर इण्डिया को भारत की अब तक की सर्वश्रेष्ठ फिल्म चुना था. विकी के सर्वेक्षण के मुताबिक आज  भी सर्वाधिक देखी जाने वाली ५ फिल्मों की सूची में मदर इण्डिया, किस्मत, मुग़ल ए आज़म, शोले और हम आपके हैं कौन शामिल हैं.  महबूब खान निर्देशित सन १९५७ में आयी यह फिल्म वास्तव में महबूब खान की सन १९४० की फिल्म औरत का रीमेक थी. इस फिल्म का शीर्षक कैथरीन मेयो की सन १९२७ में आयी पुस्तक मदर इण्डिया से से लिया गया था, इस पुस्तक में  भारतीय समाज पर गहरे प्रहार किये गए थे और उसके आरोपों का उत्तर देने के लिए लाला लाजपत राय ने दुखी भारत शीर्षक से एक पुस्तक लिखी थी और भारतीयों पर लगाये गए आरोपों का उत्तर दिया था. कैथरीन की इस पुस्तक की आलोचना महात्मा गाँधी ने भी यह कहते हुए की थी कि मेयो ड्रेन इन्स्पेक्टर का काम कर रही हैं और किसी के इशारे पर भारत की गंदगी को अतिशयोक्ति पूर्ण ढंग से दुनिया के सामने रख रही हैं और उस समय इसकी प्रतियाँ भी जलाई गयी थीं. इसीलिये जब महबूब ने यह नाम रखने का निर्णय लिया तो सबसे पहले उन्होंने विवादों से बचने के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय से अनुमति हेतु सन १९५२ में पत्र लिखा, लेकिन  सूचना और प्रसारण मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय को लगा कि यह फिल्म कैथरीन की विवादित पुस्तक पर आधारित होगी लेकिन १७ सितम्बर सन १९५५ को महबूब ने अपने पत्र में यह स्पष्ट कर दिया कि इस फिल्म का कैथरीन की पुस्तक से कोई लेना देना नहीं है और तब उन्हें यह नाम इस्तेमाल करने के लिए हरी झंडी मिल गयी. इसके बाद औरत फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने वाले वजाहत मिर्ज़ा से इसे नए रूप में लिखने को कहा गया. महबूब इस फिल्म को आजादी की १० वीं वर्षगांठ पर १५ अगस्त सन १९५७ को रिलीज़ करना चाहते थे लेकिन यह फिल्म २ महीने बाद २५ अक्तूबर को रिलीज़ हो सकी. राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु तथा इंदिरा गाँधी के लिए राष्ट्रपति भवन में इसका स्पेशल शो रखा गया. यह फिल्म सन १९९० तक अर्थात ४० से अधिक सालों तक एक थियेटर में चलती रही थी, जो एक रिकार्ड है. इस फिल्म को भारत की सर्वाधिक प्रशंसित फिल्म का गौरव हासिल है. यह उस समय की ब्लाकबस्टर फिल्म थी. इसे अकेडमी अवार्ड के लिए विदेशी भाषा की फिल्म की श्रेणी में नामित किया गया था.वास्तव में यह फिल्म स्वतंत्रता बाद के ग्रामीण भारत का जीवंत दस्तावेज है और गोदान के बाद भरतीय किसान की विवशता को यदि कोई वाणी दे सका तो वह यह फिल्म थी. २६ साल की नर्गिस ने युवा से लेकर वृद्धा तक के अभिनय को जिस प्रभावशाली ढंग से परदे पर उतारा था, वह आज भी अतुलनीय है. फिल्म इण्डिया के सम्पादक बाबूराव पटेल ने इसे भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म कहा था. सी एन एन आई बी एन के राजीव मसंद ने इस फिल्म के लिए लिखा है कि इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा को वैश्विक परिदृश्य पर स्थापित किया और आने वाले कई दशकों तक यह फिल्म विश्व की नज़र में भारत की सर्वश्रेष्ठ फिल्म बनी रही. इण्डिया टाइम्स ने मरने से पहले एक बार ज़रूर देखने वाली १००१ फिल्मों में हिन्दी से केवल मदर इण्डिया और दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे को स्थान दिया है. बाद में आयी  कई फिल्मों पर मदर इण्डिया का साफ़ प्रभाव देखा जा सकता है. अमिताभ अभिनीत दीवार में मेरे पास माँ है संवाद इस फिल्म से प्रभावित था. क्योंकि सास भी कभी बहू थी  सीरियल में राधा अर्थात नर्गिस द्वारा अपने पुत्र को गोली मारने का दृश्य पुनर्जीवित किया गया था और इसे सन २००४ के दर्शकों ने उतने ही उत्साह के साथ देखा था. कन्हैयालाल ने सुखीलाल के अभिनय में जान फूंकी थी तो सुनीलदत्त का बिरजू एवं राजकुमार का शामू का किरदार भी जीवंत प्रतीत होता है. नौशाद का संगीत इस फिल्म के दृश्यों हेतु बेहद सटीक था और गीतों ने भी धूम मचाई थी और आज भी इसके गीतों घूँघट नहीं खोलूँगी सैयां तोरे आगे, नगरी नगरी द्वारे द्वारे,दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा, दुःख भरे दिन बीते रे भैया, ओ गाड़ी वाले, होली आयी रे कन्हाई, ना मैं भगवान् हूँ, पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली को लोग गुनगुनाते मिल जायेंगे.  ऐसी फ़िल्में रोज़ रोज़ नहीं बनतीं. यूँ तो महबूब खान ने कई यादगार फ़िल्में बनायीं लेकिन यह फिल्म बनाकर ही वे विश्व सिनेमा के इतिहास में अमर हो गए हैं.


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