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मैथलीशरण गुप्त

http://puneetbisaria.wordpress.com/
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आज द्विवेदी युग के शीर्षस्थ कवि राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त की जयंती है। आपने भारत भारती, यशोधरा, साकेत आदि कृतियों के अमर गायक गुप्त जी ने ही सर्वप्रथम हिन्दी साहित्य मे स्त्री विमर्श का श्रीगणेश किया, विधृता, यशोधरा, उर्मिला, कैकेयी आदि उपेक्षित नारियों के त्याग को प्रकाश मे लाकर आपने हिन्दी साहित्य को बहुविध बनाया। संसद मे रहकर आपने हिन्दी के पक्ष मे अपनी आवाज़ बुलंद की।

मैथलीशरण गुप्त जी को लोग पुरातनपंथी कहकर खारिज करने का प्रयास करते हैं, लेकिन उनकी कुछ पंक्तियाँ नीचे दी जा रही हैं, जिनसे यह धारणा खंडित होती है ———-

कड़ी धूप मे तीक्ष्ण ताप से तन है जलता,
पानी बनकर नित्य हमारा रुधिर निकलता।
तदपि ह

मारे लिए यहाँ शुभ फल कब फलता?
रहता सदा अभाव, नहीं कुछ भी वश चलता।
(किसान)
प्राचीन हो या नवीन, छोड़ो रूढ़ियाँ जो हो बुरी।
बनकर विवेकी तुम दिखाओ हंस जैसी चातुरी ।
(भारत भारती)
वे तीर्थ पंडे हैं, जिनहोने स्वर्ग का ठेका लिया ।
है निंद्य कर्म न एक ऐसा, हो न जो उनका किया ॥
(भारत भारती)
आक्षेप करना दूसरों पर, धर्म निष्ठा है यहाँ।
पाखंडियों की ही अधिकतर अब प्रतिष्ठा है यहाँ।
हम आड़ लेकर धर्म की, अब लीन हैं विद्रोह में ।
मत ही हमारा धर्म है, हम पद रहे हैं मोह में।
(भारत भारती)
राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त की जयंती पर उन्हें मेरा नमन

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