Menu
blogid : 11045 postid : 12

प्रकृति के तांडव से बचकर रहने की ज़रूरत है

http://puneetbisaria.wordpress.com/
http://puneetbisaria.wordpress.com/
  • 157 Posts
  • 132 Comments

विकिरण के दुष्प्रभाव रूस तथा अमेरिका तक जा पहुँचे थे, उसने मानवता को यह अहसास करा दिया है कि जिस दिन प्रकृति का ताण्डव शुरू हो जाएगाा, उस दिन मनुष्य की समस्त उपलब्धियाँ उसके समक्ष नतमस्तक होने को विवश हो जाएँगी। जापान के परमाणु रिएक्टरों से उत्सर्जित विकिरण ने यह सबक भी दिया है कि प्रकृति के क्रोध तथा विज्ञान की तथाकथित उपलब्धियों का संयोग मनुष्य के अस्तित्व पर भी प्रश्नचिह्न लगा सकता है। जिस प्रकार से आज प्रकृति का यह क्रोध रह-रहकर धरती पर फूट रहा है, वह भविष्य के किसी भारी संकट का पूर्वाभास देता प्रतीत होता है। वैज्ञानिकों इस बात की भी जाँच करनी चाहिए कि उन्होंने अन्तरिक्ष में जो असंख्य कृत्रिम उपग्रह छोड़ रखे हैं, जो हमारे जनसंचार हेतु अपरिहार्य हैं परन्तु वे भविष्य में धरती पर गिरकर मनुष्य के अस्तित्व के लिए खतरा तो नहीं बन जाएँगे! इसके अतिरिक्त इन उपग्रहों के अन्तरिक्ष में रहने से अन्तरिक्ष के पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव तो नहीं पड़ रहा है!
विश्व के प्रत्येक धर्म के ग्रंथों में प्रलय का उल्लेख आता है। यह प्रलय विज्ञान की कसौटी पर भी कसी जा चुकी है। वैज्ञानिकों का मत है कि बढ़ते हुए पर्यावरणीय प्रदूषण तथा खनिज संसाधनों के अतिदोहन के परिणामस्वरूप धरती, वायुमण्डल एवं जल क्षेत्र सभी का नैसर्गिक स्वरूप क्षतिग्रस्त हुआ है एवं भूकम्प, अनावृष्टि, अतिवृष्टि, अम्ल वर्षा, बाढ़, सुनामी, अल निनो प्रभाव, जलवायुविक परिवर्तन (तापमान में वृद्धि अथवा शीतकाल) आदि के थोड़े-थोड़े अन्तराल पर घटित होते रहने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। कामायनी महाकाव्य में महाकवि जयशंकर प्रसाद ने जिस महाप्रलय का उल्लेख किया था, वह कुछ-कुछ भारत, आस्टेªलिया, श्रीलंका, इण्डोनेशिया, जापान आदि देशों में आ चुकी सुनामी का वृहद् स्वरूप रही होगी। जिस प्रकार वर्तमान समय में बारी-बारी से विश्व के अलग-अलग देशों में प्रकृति का ताण्डव चल रहा है, उससे महाप्रलय के कभी भी आने की आशंका है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply